स्टीफन हॉकिंग मात्र 21 साल की आयु में न्यूरॉन मोर्टार नामक
बीमारी से ग्रस्त हो गए थे। इस बीमारी में शरीर के सारे अंग धीरे-धीरे काम करना
बंद कर देते हैं और अंत में श्वास नली बंद हो जाने से रोगी की मौत हो जाती है। इस
बीमारी से वे डरे नहीं, बल्कि उन्होंने बीमारी को चुनौती
देते हुए वील चेयर पर कैंब्रिज जाना प्रारंभ कर दिया। डॉक्टर्स ने दबी जुबान से
बोल दिया था कि स्टीफन बस चंद दिनों के मेहमान हैं। कुछ डॉक्टर्स ने तो स्पष्ट रूप
से बोल दिया था कि वे दो वर्ष से ज्यादा जीवित नहीं रह पाएंगे। इस बात पर स्टीफन
बोले थे, ‘मैं 2 नहीं, 20 नहीं बल्कि पूरे 50 सालों तक जियूंगा। मुझे जीना है
और अपने लक्ष्य तक पहुंचना है।’
आज पूरी दुनिया जानती है कि उन्होंने अपनी इस बात को सही साबित कर
दिखाया। उनका निधन 76 वर्ष की आयु में हुआ। उन्होंने अपनी ज्वलंत
इच्छाशक्ति से न केवल असाध्य बीमारी को पराजित कर दिया बल्कि अपनी वैज्ञानिक
प्रतिभा का भी लोहा मनवाया। पहले खगोलशास्त्रियों का मानना था कि ब्रह्मांड एक बड़े
ठोस पदार्थ के रूप में था। इस बड़े टुकड़े में विस्फोट होकर उसके अनेक छोटे-छोटे
टुकड़े बन गए। ये टुकड़े टूट-टूट कर दूर तक छिटक गए। छिटके हुए यही टुकड़े तारे,
ग्रह और आकाशगंगा बन गए।
स्टीफन हॉकिंग ने लगातार शोध के जरिए अंतरिक्ष और ब्रह्मांड संबंधी
हमारी जानकारियों में बढ़ोतरी की, उसे विस्तार दिया। उन्होंने विश्व को अनेक महान
खोजें देकर इस बात को साबित कर दिया कि यदि व्यक्ति के अंदर ज्वलंत इच्छा है तो वह
न केवल जिंदगी के हर मुश्किल दौर से बाहर निकल आता है, बल्कि
सफलता के ऐसे मापदंड भी स्थापित करता है जिसे पूरा करना दूसरों को नामुमकिन जैसा
लगने लग जाए। उनका जीवन लंबे समय तक मनुष्य मात्र का प्रेरणा देता रहेगा।