Friday, June 28, 2019

काशी का अनोखा रेस्टोरेंट यहां स्वागत से लेकर मेजबानी तक करते हैं, दिव्यांग


सोचिए आप किसी रेस्टोरेंट में जाएं और वहां दरवाजे पर आपका स्वागत कोई दिव्यांग व्हील चेयर पर बैठकर मुस्कुराते हुए करे। जी हां, वाराणसी में एक ऐसा ही रेस्टोरेंट है कैफेबिलिटी जहां पर गेट पर स्वागत से लेकर रेस्टारेंट की रसोई, वेटर सभी दिव्यांग लड़के लड़कियां है। कैफेबिलिटी की दो शाखाएं हैं एक मलदहिया स्थित विनायक प्लाजा में दूसरा आईपी मॉल सिगरा में। दोनों की जगहों पर करीब 15 दिव्यांग लड़के लड़कियां काम करते हैं और खुद को स्वावलंबी बना रहे हैं। 
करीब दो वर्ष पहले तीन दोस्तों ने कैफेबिलिटी के जरिए दिव्यांगों को बेचारगी से निकालने का जिम्मा उठाया। ये थे बिंस जॉन, सूरज मेथ्यू और साजी जोसेफ। विनायक प्लाजा में कैफेबिलिटी के डायरेक्टर सीजा जोसेफ ने बताया कि लगभग 20 साल पहले हम तीनों बनारस आए। मैं चेन्नई में एक यूनिवर्सिटी में पढ़ाता था। सूरज आंध्रप्रदेश से हैं और बिंस मेरे ही शहर से। हम तीनों की बनारस में मुलाकात हुई। वक्त बीता एक ही सोच तीनों में थी कि दिव्यांग लोगों के लिए कुछ करना है। इसी बात को लेकर जनविकास समिति और किरण संस्था से जुड़ गए। सीजा ने बताया दोनों ही संस्थाओं में दिव्यांगों के लिए कार्य होता है। हमने दिव्यांग लड़के लड़कियों को कोई अपने यहां काम पर नहीं रखता था। ऐसे में फिर तय हुआ बनारस टूरिज्म का हब है तो यहां पर रेस्टोरेंट या होटल इंडस्ट्री में इनके जॉब की व्यवस्था शुरू की जाए। इसके बाद इस रेस्टोरेंट को हम तीनों ने खोला। यहां दिव्यांग बच्चों को छह महीने की ट्रेनिंग दी गई। जिसमें डिशेज बनाने से लेकर, सर्व करना, कॉफी, बेवरेज बनाना सभी चीजें सिखाई गईं। यहां के ट्रेंड बच्चे तो आज साउथ और रांची के कई रेस्टोरेंट में भी काम कर रहे हैं। विशेष बात यह कि इन सभी बच्चों को कॉफी बोर्ड ऑफ इंडिया सहित कई बड़ी प्रोफेशनल कंपनियों द्वारा ट्रेनिंग दी गई है। हमारे यहां ऐसी भी लड़कियां हैं जो एमबीए कर रही हैं। सभी बहुत खुश हैं आए दिन हमारे किचन की रसोई में नए नए प्रयोग होते हैं। सभी दिव्यांग सामान्य परिवार से हैं।
लहरतारा के रहने वाले भीमराज जो कि पैरों से दिव्यांग हैं उन्हें ये पसंद नहीं कि कोई उनको सहारा दे। भीमराज का कहना है मैं सक्षम हूं खुद से सबकुछ करने के लिए। बताया लहरतारा से स्वयं ट्राई साइकिल चलाकर रेस्टारेंट आता हूं। हदूर से आती गाड़ी की स्पीड के अनुसार मैं अंदाजा लगा लेता हूं कि वह मेरे करीब कब तक पहुंच जाएगी इसी आधार पर रास्ता पार कर लेता हूं। जब स्कूल में था तो टीचर की लिप्सिंग से दूर से ही यह समझ लेता था कि वह क्या पढ़ा रहे हैं। मगर पैर के आपरेशन के बाद और न्यूरो की परेशानी से इस वक्त परेशान हैं। मगर रेस्टारेंट में काम करके खुद को मजबूत सा महसूस करते हैं। भीमराज के पिता रामलखन शास्त्री सरकारी नौकरी से अवकाश प्राप्त हैं। भीम ने बताया कि मेरा पूरा परिवार हर पल मेरा सहयोग करता है।
चांदमारी की रहने वाली रेस्टारेंट की असिस्टेंट मैनेजर रितु पटेल जो एक पैर और एक हाथ से दिव्यांग हैं उन्होंने बताया मुझे कभी नहीं लगा की हम सामान्य नहीं है बल्कि सामान्य इंसान से ज्यादा और बेहतर काम करते हैं। मैं एमबीए कर रही हूं और होटल इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाना चाहती हूं। 
सिगरा की रहने वाली शालिनी जो कि पैरों से दिव्यांग हैं उन्होंने बताया पहले लगता था कि जीवन बेकार है। मगर जब से यहां जुड़ी जिंदगी अच्छी लगती है। हम बेचारे नहीं खास हैं। 
कस्टमर करते हैं इन पर गर्व
रेस्टोरेंट में आने वाले कस्टमर इन दिव्यांगों को देखकर बड़ा गर्व महसूस करते हैं। क्योंकि ये लोग बेचारे नहीं बादशाह बनकर जीवन जीते हैं। प्रिया यादव व जाहृनवी ने बताया कि इन दिव्यागों को देखकर ये अच्छा लगा कि ये लोग दूसरों पर निर्भर नहीं बल्कि खुद के बल पर जीते हैं और खुश हैं।


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