ब्रह्मानंद
शर्मा राजस्थान में सिविल न्यायाधीश और
न्यायिक मजिस्ट्रेट हैं, जो अन्य जजों की तरह दलीलों के आधार पर अपना फैसला
सुनाते हैं, लेकिन वो खुद अपने नोट्स को पढ़ते नहीं है. खास
बात ये है कि शर्मा देख नहीं पाते हैं और वकीलों की ओर से सलंग्न किए दस्तावेजों
और दलीलों को सुनकर अपना फैसला सुनाते हैं. वे राजस्थान के पहले नेत्रहीन जज हैं
और उन्होंने कई दिक्कतों को पार करते हुए यह मुकाम हासिल किया हैशर्मा अजमेर
जिले के सारवार कस्बे के न्यायिक मजिस्ट्रेट हैं. 22 साल की उम्र में
ही ग्लेकोमा की वजह से उनकी आंखों की रोशनी चली गई थी और वो जज बनना चाहते थे.
आंखों की रोशनी जाने के बाद भी उन्होंने अपने सपनों को बरकरार रखा और जज के पद पर
नियुक्त हुए. टाइम्स ऑफ इंडिया को उन्होंने बताया कि मैंने कई कोचिंग सेंटर से बात
की, लेकिन सभी ने उनकी मदद करने से बना कर दिया था.
शर्मा ने अनोखे तरीके से जज की परीक्षा के लिए पढ़ाई की थी और
इस पढ़ाई में उनकी पत्नी का भी अहम सहयोग रहा है. उनकी पत्नी जो सरकारी स्कूल में
टीचर हैं, किताबें पढ़ती थीं और उसकी
रिकॉर्डिंग कर देती थी, जिसके बाद शर्मा उन रिकॉर्डिंग्स को
पढ़कर वे पढ़ाई करते थे. उन्होंने रिकॉर्डिंग के माध्यम से ही पूरी तैयारी की और
सफलता भी हासिल की.
भीलवाड़ा के रहने वाले शर्मा ने सरकारी स्कूल से पढ़ाई करने के
बाद राजस्थान ज्यूडिशयल सर्विसेज की परीक्षा में भाग लिया और पहली ही कोशिश में
सफलता हासिल कर ली. उन्होंने इस परीक्षा में 83वीं रैंक हासिल की थी, जो
वाकई चौंका देने वाला था. राजस्थान हाईकोर्ट में एक साल की ट्रेनिंग करने के बाद
उन्होंने नौकरी ज्वॉइन की. सबसे पहले चित्तौड़गढ़ में उनकी नियुक्ति हुई थी. शर्मा
की सुनने की शक्ति इतनी तेज है कि वो किसी भी वकील के चलने की आवाज से वकील को
पहचान लेते हैं.