Friday, June 21, 2019

वाराणसी: दिव्यांग जरूर हूं, लेकिन किसी पर बोझ नहीं बनूंगी


जख्म दिल पर लगे या जिस्म पर, अक्सर हौसले डगमगा जाते हैं। मगर विरले ही हैं जो लाख दुश्वारियों के बाद भी लक्ष्य को साधने का हौसला रखते हैं। कुछ ऐसा ही जज्बा दिखाया है जौनपुर की अंजूलता सिंह ने।
दृश्य कला संकाय, बीएचयू के बीएफए अंतिम वर्ष की छात्र अंजूलता सिंह व सहपाठी राकेश कुमार परिसर में ही शनिवार को दुर्घटना के शिकार हो गए थे। दोनों का इलाज ट्रामा सेंटर में चल रहा है। दैनिक जागरण से बातचीत करते हुए अंजू की आंखें छलक उठीं। कहा, भले ही मैं दिव्यांग हूं, लेकिन कभी किसी से मदद नहीं ली। पढ़ाई मुकम्मल करने के बाद नौकरी करना चाहती हूं। पारिवारिक स्थिति बेहतर है, बावजूद इसके समाज में खुद का मुकाम बनाने की तमन्ना है, ताकि मैं किसी पर बोझ न बनूं। मूलरूप से खुटहन नकवी-जौनपुर की रहने वाली अंजू के पिता कैलाश नाथ सिंह को-ऑपरेटिव बैंक के सचिव हैं। अंजू ने हाल ही में बीएचयू से एमएफए-टेक्सटाइल की प्रवेश परीक्षा दी है। इसके अलावा जेजे कालेज ऑफ आर्ट व विश्वभारती का भी फार्म भरा था, जिसकी प्रवेश परीक्षाएं अभी बाकी हैं। बड़े भाई राजेश कुमार के मुताबिक तीन भाइयों में अंजू सबसे छोटी है। जन्म से ही उसका दाहिना पैर कमजोर था, लेकिन हौसला नहीं।
तय किया है राष्ट्रीय पुरस्कार तक का सफर: अंजू शुरू से पढ़ाई में बेहतर रही हैं। विभिन्न कक्षाओं में साइंस प्रोजेक्ट के लिए कई अवार्ड भी मिल चुके हैं। स्कूल स्तर पर कोई भी स्पर्धा हो, उसमें प्रतिभाग जरूर करती थी। स्थानीय स्तर से लेकर उसने इंस्पायर अवार्ड के राष्ट्रीय पुरस्कार तक का सफर तय किया। हालांकि मामूली अंतर से वह खिताब से चूक गई थी, लेकिन जज्बा अब भी कायम है।