Thursday, October 29, 2020

जिंदगी हौसलों से भरी हो तो कोई कमजोरी इंसान को आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती

 


ये कहानी है कि अमेरिका की प्रसिद्ध धाविका विल्मा रूडोल्फ की। विल्मा रूडोल्फ की कहानी आपको सिखाएगी कि जिंदगी हौसलों से भरी हो तो कोई कमजोरी इंसान को आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती। अगर लक्ष्य को हासिल करने की जिद्द हो तो कोई बाधा आपकी सफलता का दरवाजा बंद नहीं कर सकती। विल्मा का जन्म अमेरिका के एक गरीब परिवार में हुआ था। वह एक अश्वेत परिवार में जन्मी थी। विल्मा को चार साल की उम्र में पोलिया हो गया था। डॉक्टर तक जवाब दे चुके हैं, अब यह बच्ची नहीं चलेगी। 

विल्मा हार चुकी थी। उसे समझ में नहीं आता था, लेकिन एक दिन मां ने विल्मा को थामे हुए बहुत प्यार से समझाया, ‘सब ठीक हो जाएगा, तू चिंता मत कर, तू जरूर उठेगी और चलेगी। विल्मा को सहसा विश्वास नहीं हुआ, मां यूं ही बोल रही होंगी। मेरे उदास मन को बहला रही हैं, डॉक्टरों ने हाथ खडे़ कर दिए हैं, लेकिन मां कह रही हैं, तू उठेगी और चलेगी। फिर भी मां का यह बोलना दिल को ऐसे सुकून दे गया, मानो डूबते को तिनका। ऐसे बच्चों को मां-बाप भी छोड़ ही देते हैं, पर मां ने उस जरूरी चाह को लौटाया, जो पोलियो ने छीन लिया था। 

मां ने डॉक्टरों का पीछा नहीं छोड़ा। डॉक्टरों से बात करते यह विश्वास धीरे-धीरे गाढ़ा होता गया कि मालिश से इलाज मुमकिन है। दो साल तक मां अपनी विल्मा को गोद में लिए बहुत दूर अस्पताल का सफर तय करती रहीं। डॉक्टरों को उम्मीद नहीं थी, लेकिन मां ने विल्मा के मन में जो उम्मीदों का बाग लगाया था, उसमें फूल खिलते रहते थे। मन में मां गूंजती रहती थीं- एक दिन तू जरूर चलेगी।

कभी लगता, काश! मां पहले ध्यान देतीं, लेकिन वह तो लोगों के घरों में काम करने में उलझी रहती थीं और विल्मा अपनी सिलसिलेवार बीमारियों में। पहले मां के पास कहां समय था, घर में 22 बच्चे थे, पिता की दो शादियों से। इतने बडे़ परिवार में बच्ची ने सबका ध्यान तभी खींचा, जब डॉक्टरों ने बता दिया कि अब इस बच्ची को बस ढोते रहना है। बच्ची की बाहर मालिश कराते-कराते मां भी मालिश सीख गईं और घर की बड़ी बेटियों को भी मालिश करना सिखा दिया। मां ने सबको बता दिया कि देखो, विल्मा के पैर को फिर जिंदा करना है। दायां तो ठीक है, बायां ही चुनौती दे रहा है, जिसका सामना हमें मिलकर करना है। जब मौका मिले, इस कमजोर पैर की मालिश से पीछे नहीं हटना। घर की पूरी मातृ शक्ति ने बीड़ा उठा लिया। मां तो लगी ही रहतीं और जब जिस बड़ी बहन को मौका मिलता, वही मालिश में जुट जाती।  

कुछ ही दिनों में विल्मा बाएं पैर पर कुछ जोर देने लगी। मां, बहनों की उम्मीद और बढ़ गई। वे अक्सर विल्मा के लेग ब्रेस हटा देती थीं और पैर की मालिश शुरू कर देती थीं। आठ साल की उम्र में विल्मा ने बिस्तर छोड़ लेग बे्रस पहने चलना शुरू कर दिया। एक दिन वह भी आया, जब मां ने विल्मा को बास्केटबॉल खेलते देखा। विल्मा की उम्र थी 11 साल। वह न सिर्फ दौड़ती थीं, उछलकर बॉल को बास्केट में भी डालने लगी थीं। जल्दी ही ब्रेस से मुक्ति मिल गई और जब भी मौका मिलता, वह दौड़ लगा देतीं। लगातार तेज से और तेज। विल्मा रूडोल्फ (1940-1994) जानी-मानी खिलाड़ी और धावक बन गईं। 

सोलह की उम्र में अपने देश की ओर से मेलबर्न ओलंपिक खेलों के लिए चुनी गईं। 100 गुणा चार रिले रेस में कांस्य पदक जीतने वाली टीम का हिस्सा रहीं। उसके चार साल बाद वह रोम ओलंपिक में रिकॉर्ड तोड़ते हुए तीन-तीन स्वर्ण जीतने में कामयाब रहीं। जिस लड़की को कभी डॉक्टरों ने हमेशा के लिए अपंग मान लिया था, उस लड़की ने दुनिया के सर्वश्रेष्ठ धावकों में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में हमेशा के लिए लिखवा लिया। उन्हें दुनिया की सबसे तेज महिला कहा गया। शोहरत की बुलंदियों पर भी वह पुराने दिनों को याद करते हुए कहती थीं, ‘मेरे डॉक्टरों ने मुझे बताया था कि मैं फिर कभी नहीं चलूंगी। मेरी मां ने मुझे कहा कि मैं चलूंगी। मैंने अपनी मां पर विश्वास किया। कुदरत का करिश्मा देखिए, मां के निधन के कुछ दिनों बाद विल्मा को गंभीर बीमारी हुई और उन्होंने भी दुनिया को अलविदा कह दिया। मां और बेटी, शायद एक-दूजे के लिए जन्मी थीं। 

सोशल मीडिया से