Monday, July 8, 2019

13 साल की उम्र में कट गए दोनों हाथ,फिर भी नहीं छोड़ा हौसला और लिख डाली जीत की कहानी



दिव्यांगता शरीर से होती है, मन से नहीं। अगर आप मन से कुछ करने की ठान ले तो कुछ भी असंभव नहीं होता है।यह कहना है बाबतपुर, बनारस की रानी वर्मा का। एकेटीयू के सेंटर फॉर एडवांस स्टडीज (कैस) में हाल ही में ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट असिस्टेंट के पद पर तैनात हुईं रानी के 13 साल की उम्र में एक हादसे में दोनों हाथ कट गए। रानी ने हार मानने की जगह पैर से लिखना सीखा। हाईस्कूल व इंटर के बाद बीटेक किया और गेट भी क्वालीफाई कर लिया। वह अपनी छोटी बहन को बीएड, दूसरी बहन को बीटेक और भाई को बीएससी की पढ़ाई में सहयोग कर रही हैं। रानी पूरे परिवार का खर्च भी उठा रही हैं।
 मां ने पढ़ाई शुरू कराई ...और चल पड़ी जिंदगी
रानी ने बताया कि वर्ष 2000 में जब वह छठीं क्लास में थीं तो गांव में एक पानी के पंपिंग सेट पर गई थी। जहां वह गलती से पंप के पट्टे पर गिर पड़ी। इस हादसे में उनके दोनों हाथ कट गए। एक बार तो लगा कि पूरी जिंदगी अब बड़ी मुश्किल में कटेगी। किंतु मां सूर्यपति देवी सहारा बनीं। मां टीचर थीं। वह न सिर्फ दैनिक कार्यों में सहयोग करती थीं, बल्कि पूरा संबल देकर पढ़ाई शुरू कराई। मां पढ़ाई में सहयोग करती थी और मैंने भी पैर से लिखना शुरू किया। इसके बाद एक बार फिर जिंदगी चल पड़ी। मैंने हाईस्कूल और इंटर प्रथम श्रेणी में पास किया।
भाई-बहनों को पढ़ाने के साथ उठा रहीं घर का खर्च
पिता की आर्थिक स्थिति ठीक न होने से रानी ने न सिर्फ नौकरी शुरू की बल्कि छोटी बहन रंजना को भी बीएड की तैयारी करवा रही हैं। सबसे छोटी बहन अर्चना भी आईटीएस ग्रेटर नोएडा से बीटेक कर रही है। छोटा भाई बीएससी एग्रीकल्चर की बनारस से ही पढ़ाई कर रहा है। रानी ने बताया कि पिता के पास खेत न होने से दिक्कत आती है। रानी ने पहले आईकोल व उसके बाद पीएसयू में काम किया। वह दिल्ली स्थित एक कोचिंग की ब्रांड एंबेसडर भी बनीं। हाल में दीनदयाल उपाध्याय क्वालिटी इंप्रूवमेंट प्रोग्राम के तहत कैश में ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट असिस्टेंट की भर्ती का आवेदन किया। अब यहां कैश में काम कर रही हैं।
मां की मौत के बाद फिर आई कठिन घड़ियां
एक बार फिर भगवान ने मेरी परीक्षा ली। मां की बीमारी से मौत हो गई। मैं फिर अंदर से टूटने लगी। इस बार बड़ी बहन रेखा मेरी सहारा बनी। उसके सहयोग से मैंने पढ़ाई शुरू की। मां के दिए हौसले व किसान पिता रमेश चंद्र के सहयोग से मैंने आरकेजीआईटी गाजियाबाद से बीटेक किया। गेट भी क्वालीफाई किया। इस दौरान मैंने कंप्यूटर व लैपटॉप पर काम करना सीखा।
कभी सहयोग तो कभी सरकार से मिली निराशा
रानी सरकारी सिस्टम से थोड़ा परेशान हैं लेकिन बताती हैं कि सहयोग भी उसी का मिला है। जब 10वीं प्रथम श्रेणी में पास किया तो प्रधानमंत्री की एक योजना के तहत उन्हें एक लाख रुपये मिले थे। इस आर्थिक सहयोग ने आगे बढ़ने का हौसला दिया। किंतु इतना क्वालिफाई होने के बाद भी सरकारी नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकती, क्योंकि उसमें दोनों हाथ से दिव्यांग के लिए कोई कॉलम नहीं है। हमारे पास गांव में कच्चा घर है, आज तक कोई आवासीय सहायता नहीं मिली। आश्वासन दिया गया कि पिता को पट्टा मिलेगा, इस पर भी कार्रवाई नहीं हुई।